Thursday, May 28, 2009

स्थायित्व जनादेश

लोकसभा चुनाव 2009 मे कांग्रेस का यूपीए गठबंधन भारी जनादेश के साथ सत्ता में लौटा यह जनादेश न केवल स्थायित्व के लिए था बल्कि इस जनादेश ने साबित किया की मतदाता एक बार फिर से राष्ट्रीय पार्टियों की और लौट रहे हैं कुल 543 सीटों मे से कांग्रेस का यूपीए गठबंधन 264 सीटें लेकर सबसे बड़े गठबंधन के रुप मे उभरा और वर्तमान में कुल समर्थन 322 सांसदों तक जा पहुंचा है दूसरी तरफ़ भाजपा का एनडीए गठबंधन कुल 158 सीटें पाकर दूसरे नम्बर पर रहा। कांग्रेस की व्यक्तिगत सीटें (205 सीटें) भी एनडीए गठबंधन (158 सीटें) से लगभग 50 सीटें अधिक है। कांग्रेस ने पिछले 18 सालों मे इतना अच्छा प्रदर्शन नही किया। उत्तर प्रदेश, बंगाल , केरल, उत्तरांचल में कांग्रेस ने लाजवाब प्रदर्शन किया वहीँ भाजपा को दिल्ली,राजस्थान, हरियाणा , समेत पूरे उत्तर भारत में करारी हार झेलनी पड़ी ..यकीनन राहुल गाँधी की करिश्माई छवि के आगे आडवानी का मज़बूत नेता का राग विफल हो गया साथ ही यह साबित हुआ की मनमोहन सिंह में लोगो का विश्वास अभी बरक़रार है
जहाँ एक और कांग्रेस गठबंधन जीत का जश्न मन रहा है वहीँ भाजपा और वामपंथी दल चिंतन और मनन में लग गए हैं

* एक बात तो साफ़ है कि जनता ने स्थायित्व को वोट दिया।अब मतदाता काफी परिपक्व हो गए है, क्षेत्रीय पार्टियों की ब्लैकमेलिंग से वो भी चिंतित थे। जनता गठबंधन राजनीति से थक चुकी थी। जाहिर है, बीजेपी और कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टियां है। वोट इन्ही मे बँटा। । इस बार का जनादेश स्पष्ट था, काम करने वाली क्षेत्रीय पार्टियों(उड़ीसा,बिहार) को वोट मिले, जातीय समीकरण नाकारा साबित हुए जिससे लालू और पासवान को रसातल में जाना पड़ा अन्यथा राष्ट्रीय पार्टियों के पक्ष में वोट डाले गए।

* राजनीति मे सक्रिय गुंडा माफिया नेताओं का सफाया हुआ। चुनाव आयोग की सख्ती और जागरूक मतदाता के चलते इस चुनाव में एक भी माफिया जीत नही सका। यह एक अच्छी पहल है। राजनीतिक पार्टियां जनता के इस संकेत को समझें।

* कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश और बिहार मे, क्षेत्रीय पार्टियों की बैसाखियों का सहारा नही लिया। यह एक साहसी निर्णय था, चुनाव के बाद लालू और पासवान ने भी माना की कांग्रेस के साथ न लड़ना उनकी सबसे बड़ी भूल थी किस्मत से यूपी मे दांव चल गया, बिहार मे नही चल सका।
* कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार डा.मनमोहन सिंह की साफ सुधरी छवि, विरोधियों पर भारी पड़ी।
* युवा मतदाताओं ने नए नेतृत्व (राहुल गांधी) पर विश्वास व्यक्त किया।
* पश्चिम बंगाल और केरल के मतदाताओं ने वामपंथियों को उनकी गलतियों का सबक सिखाया।
* बीजेपी ने पिछली गलती फिर दोहरायी, अति आत्मविश्वास फिर ले डूबा। जाने क्यों बीजेपी नेतृत्व हर बार आत्मविश्वास की वजह से मार खाता है।
* चुनावो के दौरान जुटने वाली भीड़, वोट देने वालो मे नही बदल सकी। वोट प्रतिशत कम रहा। गर्मी भी एक वजह रही।
* बीजेपी मुद्दों को जनता के सामने ठीक तरह से पेश नही कर सकी। महंगाई एक बहुत अच्छा मुद्दा था, लेकिन बीजेपी नेतृत्व इसको सही तरह से भुना नही सका।
* कई राज्यों (राजस्थान, उत्तराखंड) मे बीजेपी की अंदरुनी गुटबाजी उसे ले डूबी।
* वरुण गांधी की गैरजरुरी टिप्पणियां और उस पर बीजेपी का अस्पष्ट रुख, यूपी मे मुस्लिम वोटों का एकतरफ़ा धृवीकरण का कारण बना। जाहिर है, फायदा बीजेपी को नही, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को पहुँचा।

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