Wednesday, April 1, 2009

वरुण गाँधी :भाजपा की पुरानी स्क्रिप्ट का नया हीरो

पीलीभीत में बीते शनिवार को जो हुआ वो सभी ने देखा वरुण गांधी ने स्थानीय अदालत के समक्ष समर्पण किया और वो भी बिलकुल भाजपा स्टाइल में ...भगवा ब्रिगेड के कार्यकर्त्ता धार्मिक उन्माद का माहौल और गिरफ्तारी !..दरअसल इस पूरे घटनाक्रम के बाद भाजपा अपना नफा और नुक्सान का हिसाब किताब लगाने में जुट गयी है ..उत्तर प्रदेश में भाजपा पूरी तरह से आई सी यू में हैं १९९८ के चुनाव में जहाँ भाजपा ने ५७ सीटें जीती थी वही २००४ में यह संख्या सिमटकर १० रह गयी और इस बार वाजपयी की अनुपस्थिति में इस आंकडे की और दुर्गति होने की सम्भावना दिखाई देने लगी थी ऐसे में एक बार फिर उग्र हिंदुत्व का कार्ड खेलकर भाजपा अपने हालात सुधरने की कोशिश कर रही है! ..वोटों का ध्रुवीकरण शायद कुछ काम कर जाये लेकिन सहयोगी दल खासकर जे डी यू को इसमें नुक्सान का भय है वहीँ भाजपा के मुस्लिम चेहरे शाहनवाज़ हुसैन और मुख्तार अब्बास नकवी को पार्टी की लाइन के हिसाब से अपने चुनाव क्षेत्रों से सीट निकालने में मुश्किलों का सामना करना पड सकता है! सही मायनो में वरुण गाँधी नफरतवाद की कोई नयी आंधी नहीं हैं दरअसल वरुण नरेन्द्र मोदी , उमा भारती , साध्वी ऋतंभरा और विनय कटियार से आगे की कड़ी हैं ... केवल एक बात जिसने खलबली का काम किया है वो है इस नाम के पीछे गाँधी लिखा होना .....भाजपा के फायदे के अलावा वरुण व्यक्तिगत तौर पर सफलता का शार्टकट मार रहे हैं ...नफरत की राजनीति को फिर से हवा देने का काम शुरू हो गया है ..शुरूआती न-नुकुर के बाद भाजपा खुलकर वरुण गाँधी के समर्थन में आगे आ गयी है वहीँ संघ परिवार और शिवसेना ने भी वरुण के बयान पर अपनी सहमति जता दी है ...इसीलिए अग्रिम ज़मानत की चिरौरी से हिंदुत्व हित में गिरफ्तारी देना ज्यादा फायदेमंद नज़र आने लगा दरअसल अस्तित्व की तलाश करते करते सुर्खियों वाला नेता बनने का ये तरीका एक तैयार पटकथा पर अभिनय करने जैसा रहा खैर जो भी है इस पूरे घटनाक्रम ने वरुण को भाजपा के अगले फायर ब्रांड के रूप में स्थापित तो कर ही दिया है!

एक दीया तो जलाता हूँ

एक दीया तो जलाता हूँ
पर उसकी चमक को बरक़रार नहीं रख पाता हूँ
शब्द तो जैसे तैसे जुड़ जाते हैं
पर कविता पूरी नहीं कर पाता हूँ
दिशाएं तो तय कर लेता हूँ
मगर मंजिल तक नहीं पहुँच पाता हूँ
भरोसा कर लेता हूँ अनदेखे अनजाने चेहरों पर
शायद सबको अपने जैसा समझ पाता हूँ
" तो क्या प्रयास करना छोड़ दूं
इन असफलताओं से घबराकर राह पकड़ना छोड़ दूं "
कुछ नहीं छोडूंगा
हर राह अपनी तरफ मोडूँगा
क्या अपने आप से उम्मीद करना बेमानी है
यह नई कोशिश की फिर एक कहानी है
प्रयास के साथ उम्मीद जारी रहेगी
देखना एक दिन यह कविता ज़रूर पूरी होगी